*बृज की धरा पर एक माह तक नन्दोत्सव मनाया जाता है: *राजेन्द्र दास महाराज*
*प्रतिदिन कथा स्थल पर हो रहा साधु संत समाज का आगमन*
संवाददाता | नीरज ठाकुर
गढाकोटा - कथा के छठवें दिन गोपाल जी खेल परिसर कथा स्थल से पूज्य रसिक प्रवर्धक मलूकपीठाधीश्वर राजेन्द्र दास महाराज ने मंच से सभी विराजमान संतों और महंतों को यथायोग्य प्रणाम करते हुए आज की कथा का शुभारंभ करते है।अध्यक्षता परमहंस पूज्य किशोर दास देव जू गोरेलाल कुंज,बृंदाबन,निर्देशन पूज्य रामानुगृहदास महाराज अजब धाम छोटे सरकार का मिल रहा है।बृज के संतों के द्वारा एक माह का नन्दोत्सव मनाया जाता है।काल का समय नियत होता है।पंचांग के गणित को आप बदल नही सकते नही तो पूरी व्यवस्था बदल जायेगी।चार याम का दिन होता है और चार याम की रात।रात को त्रियामी भी कहा गया है।अग्नि देवताओं का मुख होने के कारण अग्नि में ही आहुति दी जाती है।धुंआ जिस अग्नि में उठ रहा हो।उसमें आहुति देना उचित नही है।इसलिये प्रचंड अग्नि में आहुति देना चाहिए।महर्षि मार्केंडेय जी ने प्रचंड अग्नि में आहुति दी जो जल नही पाई थी और देखते ही देखते जल से हाहाकर हो गया: बट के पत्ते पर एक बालक तैरता हुआ अंगूठा चूस रहा था।यह और कोई नही देवता है।हमको जो अनुभव हुआ वह सच था या झूठ। जय बोलने का अर्थ अपने समस्त माया रुप से निवृत होना है।अवतार पुरुष को संत ही बता सकते हैं ।
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