यूपी में बुलडोजर की कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट में मांगा गया जबाव ।
हाल ही में नुपुर शर्मा जो की बीजेपी की पूर्व राष्ट्रीय प्रवक्ता का टी वी शो में दिया गया बयान भारी विवादों में रहा है जिससे उनके द्वारा पैगम्बर मुहम्मद साहब पर अभद्रता पूर्ण टिप्पणी किए जाने का आरोप अन पर भारत के मुस्लिमो के सहित कई अन्य मुस्लिम देशों के द्वारा लगाया गया था ।
भारत में उत्तर प्रदेश राज्य में शुक्रवार को अटाला मस्जिद में नवाज पड़ने के उपरान्त नुपुर शर्मा की की गिरफ्तरी के लिए मुस्लिमो के द्वारा उग्र प्रदर्शन भी किया गया था तथा साथ ही साथ शासकीय संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया था ।
शासकीय परिसंपत्तियों को नुक़सान पहुचानें की घटना को देखते हुए उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने आनन फानन में तीन दिवस के अंदर आरोपियों और शासकीय संपत्तियों को नुक़सान पहुचानें बालों पर कठिन कार्यवाही करने के लिए उनके घरों को बुलडोजर के द्वारा विंध्वस्थ करने का आदेश दिया ।
की कार्रवाई कानून के अनुसार हो', सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से तीन दिन में मांगा जवाब।
न्यूज डेस्क, :-
याचिका में कहा गया कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के कार्रवाई हो रही है। साथ ही बुलडोजर चलाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी एक्शन हो।
यूपी में बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ याचिका :-
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की बुलडोजर कार्रवाई के फैसले के खिलाफ दी गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों की तरफ से दलील दी गई। सरकारी पक्ष की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जहां इस कार्रवाई को सही ठहराया है वहीं याचिकाकर्ता के वकील सीयू सिंह ने इसपर रोक लगाने की मांग की है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को निर्देश देते हुए कहा कि अनधिकृत संरचनाओं को हटाने में कानून की प्रक्रिया का सख्ती से पालन हो। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार और प्रयागराज व कानपुर विकास अथॉरिटी से इस मामले में तीन दिन के भीतर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सब कुछ निष्पक्ष दिखना चाहिए। अब इस याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई होगी।
यह चौंकाने वाला और भयावह: याचिकाकर्ता के वकील
वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि विध्वंस का कारण यह बताया गया कि हिंसा में शामिल प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। सिंह ने आगे तर्क दिया कि विध्वंस बार-बार होता रहता है, यह चौंकाने वाला और भयावह है। यह आपातकाल के दौरान नहीं था, स्वतंत्रता पूर्व युग के दौरान नहीं था। ये 20 साल से अधिक समय से खड़े घर हैं और कभी-कभी ये आरोपी के नहीं बल्कि उनके वृद्ध माता-पिता के भी होते हैं, उनका तर्क है
किसी खास समुदाय को टारगेट नहीं किया जा रहा: सरकारी पक्ष
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि जहांगीरपुरी विध्वंस मामले में किसी भी प्रभावित पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर नहीं की। उन्होंने कहा कि यूपी सरकार की तरफ से पहले ही नोटिस दिया गया था। किसी के खिलाफ गलत कार्रवाई नहीं हुई। सरकार किसी खास समुदाय को टारगेट नहीं कर रही।
कोर्ट रूम लाइव : हम संवेदनशील हैं...अफसर भी हों
पीठ (सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता व कानपुर-प्रयागराज प्राधिकरण के वकील हरीश साल्वे से) : विध्वंस सिर्फ नियमाें के अनुसार हो सकता है। प्रतिशोध के उपाय के रूप में नहीं। हम इस मुद्दे पर संवेदनशील हैं। अथॉरिटी को भी संवेदनशील होना चाहिए। हम भी देश के नागरिक हैं। जब मुद्दा अदालत के समक्ष है, तो अथॉरिटी को भी सम्मान दिखाना चाहिए।
मेहता और साल्वे : किसी विशेष समुदाय को निशाना नहीं बनाया गया। हर मामले में नोटिस दिए गए थे। प्रयागराज में एक व कानपुर की दो संपत्तियों पर कार्रवाई में उचित प्रक्रिया का पालन किया गया। (प्रक्रिया न अपनाने के जमीयत के आरोपाें पर सफाई)
मेहता : इस मामले में कोई सामान्य आदेश पारित न करें। खासकर तब, जबकि याचिका प्रभावित व्यक्तियों ने नहीं, बल्कि एक संगठन ने दायर की है। संगठन को व्यक्तिगत रूप से दिए नोटिस या अपनाई गई प्रक्रिया की जानकारी नहीं है।
हर व्यक्ति के लिए कोर्ट तक आना संभव नहीं... पर हम सब देखते हैं
पीठ : सभी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट नहीं आ सकते। हम भी समाज का अंग हैं, सब देखते हैं। यह भी देखते हैं कि क्या हो रहा है। कभी-कभी हमने कुछ धारणाएं भी बनाई हैं। शिकायत पर अगर अदालत बचाव में नहीं आती, तो उचित नहीं होगा। हम उचित प्रक्रिया से संबंधित मुद्दों के रास्ते में तकनीकी अवरोध पैदा नहीं होने देंगे।
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विरोध-प्रदर्शन में जिनके नाम बुलडोजर से उनके ही घर गिराए
यूपी में हो रही बुलडोजर कार्रवाई मामले में सुप्रीम कोर्ट में जमीयत की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीयू सिंह और नित्या रामकृष्णन ने पीठ से कुछ अंतरिम आदेश जारी करने का अनुरोध किया। ताकि, यह सुनिश्चित किया जा सके कि अथॉरिटी प्रदर्शनों में शामिल या हिंसक विरोध के मामलों में नामित लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई के रूप में बुलडोजर चलाने से बचें। दोनों वकीलों ने कहा, यह कैसा संयोग है कि भाजपा नेताओं की टिप्पणियों पर हालिया विरोध-प्रदर्शनों से संबंधित मामलों में जिन लोगों का नाम लिया गया, उनकी संपत्तियों को ढहाया गया।
सिंह ने दावा किया कि सीएम योगी आदित्यनाथ समेत उच्च सांविधानिक पदाधिकारियों ने बयान दिए कि प्रदर्शनकारियों को सबक सिखाने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल किया जाएगा। इस पर साल्वे ने कहा, विध्वंस कार्रवाई पर न्यायाधीशों की चिंताओं को नोट किया गया है और सुनवाई की अगली तारीख से पहले संबंधित अथॉरिटी को इससे अवगत कराया जाएगा। साल्वे ने कहा, हमें तीन दिनों के भीतर एक हलफनामे के माध्यम से सब कुछ रिकॉर्ड पर लाने की अनुमति दी जाए। याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी कि राज्य में उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई और विध्वंस नहीं किया जाए।
जमीयत ने दिए तीन उदाहरण...
प्रयागराज से संबंधित पहले मामले में 10 मई को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, जिसमें 22 मई को व्यक्तिगत सुनवाई तय की गई थी, जो दंगे से काफी पहले की है। 25 मई को विध्वंस आदेश पारित किया गया था। इसलिए यह ऐसा मामला नहीं हो सकता है जहां संबंधित व्यक्ति खुद अदालत का दरवाजा खटखटाने में सक्षम नहीं था।
कानपुर में भी एक संपत्ति मालिक को
अगस्त 2020 में ही कारण बताओ नोटिस जारी गया था।
कानपुर के दूसरे मामले में नोटिस तामील करने के बाद चहारदीवारी को गिराया गया था।
मीडिया मुद्दे उठाता है और इसे किसी अन्य चीज से जोड़कर हवा देता है : साल्वे
साल्वे ने कहा, मीडिया मुद्दे उठाता है और इसे किसी अन्य चीज से जोड़कर हवा देता है। लेकिन हम सब कुछ एक हलफनामे के जरिये रखेंगे। एक सामान्य आदेश क्यों पारित किया जाना चाहिए? मेहता ने कहा, जिस व्यक्ति ने ढांचा खड़ा करने में कानून का उल्लंघन किया है उसे अदालत के किसी भी आदेश के तहत शरण नहीं मिलनी चाहिए और यूपी में विध्वंस के हर मामले में प्रक्रिया का पालन किया जाता है। उन्होंने भी इस स्तर पर किसी भी सामान्य आदेश जारी करने का विरोध किया।
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